रामपाल के कारनामों से बेखबर रही पुलिस
सतलोक आश्रम और उसके कर्ताधर्ता रामपाल के बारे में नित नए खुलासे हो रहे हैं, लेकिन नक्सलियों और माओवादियों से तार जुडऩे के संकेत ने वाकई चिंता में डाल दिया है। दरअसल, चिंता का कारण रामपाल से इन संगठनों के संबंध से ज्यादा राज्य में उनकी मौजूदगी है। हालांकि यमुनानगर समेत कुछ जिलों में यदाकदा माओवादियों की उपस्थिति की चर्चा होती रही है, लेकिन इस पर उतनी गंभीरता नहीं दिखाई गई जितनी चाहिए थी। पुलिस और खुफिया तंत्र की इससे बड़ी लापरवाही और क्या हो सकती है कि बार-बार मिल रहे संकेतों की अनदेखी की गई। जहां तक रामपाल से उनके संबंधों का सवाल है तो इसके संकेत पहले से मिल रहे थे, लेकिन उसे समझने में चूक हुई। हाईकोर्ट में पेशी के समय जिस तरह रामपाल समर्थकों ने चंडीगढ़ के रेलवे स्टेशन, बस अड्डों यहां तक कि हाईकोर्ट परिसर में डेरा जमा दिया था, उसकी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए थी। सुरक्षा एजेंसियों में इतनी समझ की उम्मीद तो की ही जाती है कि वे इन घटनाओं को ठीक से पढ़तीं। रामपाल समर्थकों के तौर-तरीके बिल्कुल वैसे ही थे, जैसे नक्सली और माओवादी अपनाते हैं। रोहतक के करौंथा में हुए संघर्ष को देखें या कुछ माह पहले हिसार कोर्ट में रामपाल की पेशी के दौरान उत्पन्न स्थितियां, एक भीड़ तंत्र ने सुरक्षा व्यवस्था पर हमला बोल दिया था। नए खुलासों से पता चलता है कि रामपाल समर्थक अभी पूरी तरह गुरिल्ला युद्ध के लिए प्रशिक्षित नहीं हो पाए थे। रामपाल और उसके लोग अगर अपनी साजिश में सफल हो गए होते तो सतलोक आश्रम में उत्पन्न स्थिति के दुष्परिणाम की सिर्फ कल्पना ही की जा सकती है। हालांकि राज्य के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी अब इस बात का दावा कर सकते हैं कि रामपाल समर्थकों में नक्सलियों की मौजूदगी और उनके कुत्सित इरादों को देखते हुए बल प्रयोग से बचा गया। पूरा आपरेशन सतलोक आश्रम के भीतर मौजूद लोगों को थका देने की रणनीति पर चला और बड़े नुकसान से बचा जा सका। मगर, इन दावों से पुलिस की नाकामी नहीं छिप सकती। आखिर करौंथा और हिसार की घटनाओं के बाद भी उसने रामपाल और उसके समर्थकों पर निगरानी क्यों नहीं रखी? सतलोक आश्रम में हथियारों का जखीरा क्यों जमा होने दिया? आज जिस तरह से राइफलों के साथ लाठियां और गुलेल जैसे हथियार मिल रहे हैं, साफ है कि यह सब एक दिन में नहीं हुआ।