Sunday, 4 October 2015

अब तो जागें


अब तो जागें

आवारा कुत्तों द्वारा मासूमों की जान लेने की हालिया घटनाएं डराने वाली हैं। कुरुक्षेत्र के पिहोवा में दादी के साथ जा रही छह वर्षीय बच्ची को आवारा कुत्तों के झुंड ने नोच खाया तो करनाल के निसिंग में घर के बाहर बारह वर्षीय बालक को कुत्तों ने अपना शिकार बना लिया। बच्चे का साथी सौभाग्यशाली रहा जो किसी तरह इनके हमले में बच निकला। आबादी वाले क्षेत्र में कुत्तों का यह हिंसक हमला चिंता बढ़ाने वाला है। लावारिस पशुओं और जानवरों के खिलाफ कार्रवाई में प्रशासन हमेशा से लापरवाही बरतता रहा है। किसी घटना के होने पर अगर जागा भी तो कुछ दिन बाद फिर लंबी निद्रा में चला गया। कहने के लिए तो प्रदेश सरकार हिसार में एंटी रैबिज अभियान चला रही है, लेकिन यह भी उसकी कम और केंद्र सरकार की परियोजना ज्यादा है। नगर निगम और शहरी निकाय विभाग द्वारा कुत्तों के खिलाफ चलाए जाने वाला अभियान भी अमूमन औपचारिकता बनकर रह जाते हैं। अभियान भी तब चलाए जाते हैं जब लोग सड़क पर उतर आएं। अन्यथा ऐसा नहीं होता कि न्यायालय को इस कार्य के लिए निर्देश देना पड़े। ङ्क्षहसक कुत्तों से लोगों को बचाने के लिए टीकाकरण और बंध्याकरण अभियान चलाया जाता है। टीकाकरण से जहां उनके काटने का प्रभाव कम होता है, वहीं बंध्याकरण से उनकी आक्रामकता कम होती है और वंश वृद्धि पर भी रोक लगती है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग की तैयारी भी कम हैरान करने वाली नहीं है। ज्यादातर सरकारी अस्पतालों में एंटी रैबिज दवाइयां नहीं मिलती। फतेहाबाद जैसे जिले के लोगों को पीजीआइ की राह देखनी पड़ती है। सरकार दावे तो बहुत करती है, लेकिन जमीनी स्तर पर असर नहीं छोड़ पाती। आवारा कुत्तों के खिलाफ अभियान में भी उसकी यही हालत है। कुरुक्षेत्र और करनाल की घटनाओं के खिलाफ जिस तरह लोग सड़कों पर उतर रहे हैं, उससे समस्या की गंभीरता को समझना चाहिए। लोग सीएम विंडो पर भी इसके लिए गुहार लगा रहे हैं। दरअसल, इधर-उधर फैले मृत पशुओं का मांस खाकर ज्यादातर कुत्ते आदमखोर हो जाते हैं। पहले तो वे मवेशियों को अपना शिकार बनाते हैं और फिर मासूम बच्चों और बुजुर्गों को। ऐसे में ग्र्राम पंचायतों की भी जिम्मेदारी बनती है कि मृत पशुओं का मांस खुले में फेंकने से रोकने में आगे आएं। सरकार को भी चाहिए कि कोई सख्त कदम उठाए। जिस तरह नीलगायों को मारने का परमिट जारी किया गया, उसी तरह इस मामले में भी कोई निर्णायक फैसला ले।
(30.09.2015)

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