Sunday, 4 October 2015

राहगीरी की राह

राहगीरी की राह

करनाल में राहगीरी का हिस्सा बने मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कहा था कि यह बहुत ही अच्छा प्रयास है और इसे जिले से बाहर भी ले जाना चाहिए। अब अगर सरकार ने इसका आयोजन पूरे प्रदेश में करने का फैसला किया है तो स्वाभाविक ही है। वैसे भी राहगीरी ने अभी तक सुखद परिणाम दिए हैं। खासकर प्रदेश का गेटवे माने जाने वाले साइबर सिटी गुडग़ांव में तो इसने अपार लोकप्रियता हासिल की। कार फ्री डे को मिली कामयाबी की राह भी राहगीरी से ही निकली। यह एक तरह से वीकेंड आयोजन है जो भारतीय समाज के लिए नया नहीं है। सदियों पहले जब शहरीकरण नहीं था तो साप्ताहिक बाजार लगते थे। बदली आर्थिक और सामाजिक परिस्थितियों में साप्ताहिक बाजार प्रासंगिक नहीं रहे, लिहाजा राहगीरी जैसे आयोजन जरूरत बन गए हैं। प्रदेश में इसकी शुरुआत गुडग़ांव से हुई थी। इसके तहत सप्ताह में एक दिन रविवार को सुबह छह से आठ बजे तक शहर के लोग एक जगह जमा होते हैं। खेल-कूद और विभिन्न तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं। लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और हफ्तेभर की थकान दूर कर नई ऊर्जा से खुद को सराबोर कर लेते हैं। वाकई सकारात्मक सोच के साथ शुरू इस प्रयोग ने लोगों में सकारात्मक सोच पैदा की। हालांकि दिल्ली से सटे फरीदाबाद और चंडीगढ़ से सटे पंचकूला में भी इसे शुरू किया गया, लेकिन वह सफलता नहीं मिली जो बाद में इसे अपनाए करनाल ने हासिल कर ली। गुडग़ांव में एक खास तबके तक सीमित राहगीरी ने सीएम सिटी में आमजन को जोड़ा है। खुद मुख्यमंत्री की भागीदारी से इसकी लोकप्रियता का अंदाजा लगाया जा सकता है। अगर सरकार की योजना सिरे चढ़ी तो इसका अगला पड़ाव अंबाला होगा। संभव है रोहतक, हिसार, पानीपत और सिरसा के साथ सोनीपत में भी इसे शुरू करने का पुलिस-प्रशासन पर दबाव बने। लोगों को एक-दूसरे से जोडऩे के लिए इस तरह के आयोजन की तारीफ तो होनी ही चाहिए। मगर, यह भी देखना होगा कि यह मकसद से भटक न जाए। कहीं ऐसा न हो कि यह एक खास वर्ग का आयोजन बनकर रह जाए और बहुत बड़ा तबका स्वयं को अलग-थलग महसूस करने लगे। पुलिस के सामने सबसे बड़ी चुनौती इसमें असामाजिक तत्वों की घुसपैठ रोकने की होगी। करनाल में जिस तरह  आयोजन स्थल बदलना पड़ा उससे यह बात उजागर भी होती है। फिलहाल तो राहगीरी की सफलता की कामना करें।
(०५ अक्टूबर, २०१५)

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