राजनेता की योग अपील
पांच दिन की यात्रा पर अमेरिका गए भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार शाम संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित कर कई कीर्तिमान बनाए। उन्होंने दुनिया की इस सबसे बड़ी पंचायत को राष्ट्रभाषा हिंदी में संबोधित किया। बतौर विदेशमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी संयुक्त राष्ट्र सभा को हिंदी में संबोधित कर चुके हैं। ऐसा करने वाले वे पहले भारतीय राजनेता थे। मोदी अटल जी से कई मामलों में अलग हैं। हालांकि दोनों को हिंदुत्वादी माना गया, लेकिन अटलजी सर्वस्वीकार्य और सदभाव के प्रतीक हैं। उन्हें हिंदुत्व का नरम चेहरा माना गया। मगर, मोदी की छवि कट्टर हिंदुत्ववादी की रही है। आज का उनका संयुक्त राष्ट्र में संबोधन कई मामलों में खास रहा। अपनी छवि के अनुरूप ने उन्होंने दुनिया के समक्ष स्पष्ट विचार रखे। आतंकवाद को दो चश्मों से देखने वालों की उन्होंने जमकर खबर ली तो दुनिया का चौधरी बनने की कोशिश कर रहे देशों को भी उनकी सीमा बताई। सिर्फ राजनीति के लिए राजनीति करने वाले देशों की उन्होंने खिंचाई की और बता दिया कि अगर वाकई दुनिया का भला करना है तो चीजों को उलझाने के बजाय सुलझाया जाए। बात-बेबात संगठन बनाने के बजाय एक ही संगठन को मजबूत, लोकतांत्रिक और उपयोगी बनाया जाए। उसकी साख बढ़ाई जाए। जैसा कि उन्होंने भारत में किया। कई मंत्रालय खत्म कर बड़े मंत्रालय बनाए। हर चीज को सरल किया। नीति और कार्य व्यवहार में सरलता लाई। नरेंद्र मोदी ने दुनिया को बताया कि भारत की विदेश नीति वसुधैव कुटुंबकम की है जो भारत की आत्मा है। इसका दर्शन है। यह थोपी हुआ नहीं, बल्कि मौलिक है। इसलिए किसी देश को भारत से डरने की जरूरत नहीं है और न ही शंका करने की। हम किसी तोड़फोड़ में शामिल नहीं होते। हमारा उद्देश्य ही सकारात्मक है। नकारात्मक सोच पर उन्होंने जिस तरह चोट की वह काबिले तारीफ थी। प्रधानमंत्री ने पूरी मजबूती के साथ रखा कि नकारात्मता त्यागनी होगी। बगैर इसे छोड़े हम दुनिया को सही दिशा में नहीं ले जा सकते। सबसे अहम योग पर उनकी अपील रही। शायद यह पहली बार हुआ जब किसी भारतीय राजनेता ने इतने बड़े मंच पर योग को तमाम समस्याओं का समाधान बताया हो। कम से कम इसके लिए मोदी की जितनी तारीफ की जाए कम होगी। वैसे भी अमेरिकी प्रवास के दौरान मोदी की धूम मची हुई है। दूसरे देशों के नेताओं को शायह ही इतनी अहमियत मिली हो। मोदी अपने बारे में व्याप्त कुधारणाओं को जिस तरह खत्म कर रहे हैं, वह भी कम प्रेरक नहीं है। वह दिन दूर नहीं जब डरी सहमी दुनिया उन्हें आशा की किरण से देखे और गले लगाए। आखिर आज उसी अमेरिकी में मोदी-मोदी के नारे लग रहे हैं, जो उन्हें वीजा तक देने को तैयार नहीं था और अपमानजनक व्यवहार कर रहा था। आज वही अमेरिका उनके लिए लाल कालीन बिछाए हुए है। किसी नेता की महानता के लिए दो गुण जरूरी माने गए हैं। पहली उसकी नीतिगत स्पष्टता और दूसरी विषम से विषम परिस्थितों को अनुकूल बनाने की काबिलियत। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में ये दोनों गुण बार-बार दिखे हैं। संयुक्त राष्ट्र में उनके भाषण का विश्लेषण और उसके प्रभाव का आकलन आने में अभी वक्त लगेगा, लेकिन प्रथमदृष्टया तो यह प्रभावी लगता ही है।
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