हर दिल अजीज अनमोल निधि
स्वामी दयानिधि जी के सत्सग में निधि पर चर्चा हुई। स्वामी जी बोले, निधि यानी कोष, खजाना, धन-दौलत, संपत्ति का सांसारिक और पारलौकिक जीवन में बहुत महत्व है। निधि के बिना सबकुछ शून्य है। ज्ञान की निधि जहां हमें बुद्धि विवेक देती है, सोचने समझने की शक्ति देती है, उचित-अनुचित का भेद सिखाती है, वहीं दया व करुणा की निधि सही अर्थों में इंसान बनाती है। मानवीयता भरती है। स्वास्थ्य भी बहुत बड़ी निधि है जिसके बिना हम कोई सांसारिक कार्य नहीं कर सकते। बुजुर्ग समाज के लिए निधि हैं तो नारी परिवार के लिए। स्त्री एक ऐसी निधि है जिसका कोई मोल नहीं, कोई विकल्प नहीं। रूप-सौंदर्य भी मनुष्य के लिए किसी निधि से कम नहीं है। स्त्री के लिए पति निधि है तो पति-पत्नी के लिए संतान। पुस्तकें बेशकीमती निधि हैं, जो जीवन की राह दिखाती हैं। स्वामी जी पूरे लय में थे। धारा प्रवाह बोल रहे थे और साधक मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे। इस बीच, एक युवती उठी। थोडी झिझक लेकिन आक्रोश के साथ वह बोल पड़ी। स्वामी जी, आपने निधि की इतनी प्रशंसा की, इसके महत्व बताए, लेकिन समझता कौन है? मैं भी तो निधि हूं। मुझे तो ऐसा नहीं लगा कि निधि को लोग इतना अहम समझते हों। वह बोलती गई नारी पर हो रहे अत्याचार पर, उसके शोषण पर। समाज में बैठे गिद्ध और भेड़ियों पर। बसों, ट्रेनों में सफर के दौरान हो रहे अपमानों पर। आफिस में हो रहे भेदभाव और दूधवाले की मनमानी पर। अब लोग स्वामी जी नहीं, निधि को सुन रहे थे और वह अपने रौ में बही जा रही थी।
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