Tuesday, 30 September 2014

निर्मम मोदी


निर्मम मोदी

अमेरिका में धूम मचाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारत में कुछ मित्र आलोचना भी कर रहे हैं। यह अलग बात है कि आलोचना के लिए उन्हें अपने तर्क या यह कहें कि कुतर्क ढूंढ़ने पड़ रहे हैं। कांग्रेस अमेरिकी कंपनियों के सीईओ के साथ बैठक को दिखावा बता रही है.तो कुछ मित्र मेडिसन स्कवायर पर प्रोग्राम के दौरान विरोध की तख्तियां उठाए कुछ अमेरिकियों की तस्वीर सोशल मीडिया पर शेयर कर रहे हैं। मोदी की इस पूरी यात्रा के दौरान अगर सबसे बुरी स्थिति किसी की है तो निश्चित रूप से अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की। आखिर जिस व्यक्ति को उनका देश वीजा तक नहीं दे रहा था, आज उसी के लिए उन्हें लाल कालीन बिछानी पड़ रही है। जिस व्यक्ति को ओबामा कट्टर हिंदू वादी, संकीर्ण सोच और सांप्रदायिक हिंसा का कारण मानते रहे हों, जो उनके जैसा अकादमिक न हो। जिसे कुलीन वर्ग हेय दृष्टि से देखता रहा और कुछ वर्षों या कहें कुछ महीने पहले तक अमेरिका के लिए निरापद रहा हो, उसका गले लगाकर स्वागत करना पड़ रहा है। दूसरी तरफ मोदी एक ऐसे योद्धा हैं जो शत्रु पर तनिक भी रहम नहीं करते, पूरी तरह निर्मम। उन्हें इस बात की तनिक भी परवाह या चिंता नहीं है कि उनके समर्थन में लग रहे मोदी-मोदी के नारे से अमेरिकी राष्ट्रपति और उनके विरोधियों पर क्या बीत रही होगी? हालांकि यह निर्ममता मोदी का गुण है, जो उन्हें अपनों से दूर लेकिन विजयश्री दिलाता है। याद कीजिए गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने तत्कालीन वरिष्ठ नेताओं के साथ कैसा सुलूक किया? व्यक्तिगत निष्ठा, सम्मान और आदर का भाव कभी उनकी कमजोरी नहीं बने। एक राजा की तरह शासन के हर रोड़े को उन्होंने निर्ममता से दूर फेंका। वह केशु भाई पटेल रहे हों या शंकर सिंह बघेला। प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद यही कार्य उन्होंने केंद्रीय राजनीति में किया। जसवंत सिंह जैसे नेताओं को उन्होंने टिकट नहीं देने दिया। लालकृष्ण आडवाणी को टिकट देकर कृपा ही की गई, लेकिन सरकार के गठन में आडवाणी, जोशी और उनके दूसरे समकालीन नेताओं का क्या हुआ? यह सभी के सामने है। हां जिन्होंने फैसले को बगैर ना-नुकुर के स्वीकार कर लिया, एक-एक कर उन्हें राज्यपाल बनाकर राजभवन भेज जा रहा है। इतना ही नहीं, मंत्रिमंडल सहयोगियों के प्रति उनका व्यवहार भी किसी से छिपा नहीं है। लाख कोशिश करके भी नंबर दो राजनाथ सिंह अपनी पसंद के अधिकारी को साथ नहीं रख सके। और चुनाव हारने के बावजूद अरुण जेटली रक्षा और वित्त जैसे बड़े मंत्रालय संभाल रहे हैं। कमजोर शैक्षणिक रिकार्ड की स्मृति ईरानी मानव संसाधन जैसा मंत्रालय संभाल रही हैं।

यही निर्मम व्यवहार उनका अमेरिका में भी है। वह पूरे इत्मीनान से बराक ओबामा के सीने पर मूंग दर रहे हैं। विरोधी इस इंतजार में हैं कि मोदी कोई गलती करें, दूसरी तरफ मोदी हैं कि एक के बाद एक कर सफलता व लोकप्रियता के न केवल झंडे गाड़ रहे हैं बल्कि नए कीर्तिमान बना रहे हैं।












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