गरीब बच्चों की पढ़ाई की चिंता
आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मेधावी बच्चों को निजी स्कूलों में शिक्षा दिलाने के लिए प्रदेश सरकार का नया कदम स्वागत योग्य है। निजी स्कूलों की सबसे बड़ी मांग भी यही थी कि गरीब बच्चों की शिक्षा पर आने वाले खर्च का बोझ उन पर न डाला जाए। इस मुद्दे पर सरकार अभी तक स्पष्ट रूप से कुछ नहीं बोल रही थी, जिसकी वजह से बात नहीं बन रही थी और निजी स्कूलों को गरीब बच्चों को दाखिला न देने का मजबूत आधार मिल रहा था। लंबी अदालती कार्यवाही के साथ वे सड़क पर भी लड़ाई लड़ रहे थे। जिले में एक दिन छुïट्टी रखकर विरोध जताने का अंबाला से शुरू निजी स्कूलों का अभियान विभिन्न जिलों से होता हुआ आगे बढ़ रहा था। ऐसे में सरकार का यह कहना कि वह गरीब बच्चों की शिक्षा पर आने वाला पूरा खर्च वहन करेगी, उम्मीद की किरण जगाता है। ऐसा कर उसने एक बहुत बड़ा अवरोध खत्म कर दिया है। निजी स्कूलों में गरीब बच्चों के दाखिले का कोटा बढ़ाकर 25 प्रतिशत करने का प्रस्ताव भी स्वागत योग्य है। शिक्षा नियमावली 134ए के तहत पहले भी यह कोटा 25 प्रतिशत था, जिसे बाद में घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया गया। अब सरकार ने फिर इसे बढ़ाकर अपनी गंभीरता का अहसास कराया है। हालांकि यह उम्मीद करना जल्दबाजी होगी कि निजी स्कूल मान जाएंगे। फेडरशन ऑफ प्राइवेट स्कूल महासंघ की राज्य इकाई ने जिस तरह गरीब बच्चों के लिए पहली से आठवीं कक्षा तक 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने के सरकार के फैसले को एकतरफा करार दिया है, उससे पता चलता है कि वे मानने को तैयार नहीं हैं। अड़चन प्रतिपूर्ति पर भी है। सरकार उस राशि की ही प्रतिपूर्ति करेगी जो वह बच्चों से वसूल करती है, जबकि निजी स्कूलों में तय मदों की लंबी फेहरिस्त होती है। ऐसे में उन्हें सरकार का प्रस्ताव स्वीकार होगा, इसमें संदेह है। हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ ने तो कह भी दिया है कि सरकार द्वारा तय प्रतिपूर्ति किसी सूरत में मंजूर नहीं होगी। अनुमानत: प्रदेश में लगभग 4900 प्राइवेट स्कूल हैं और इनमें करीब 28 लाख बच्चे पढ़ते हैं। अगर सरकार इस प्रस्ताव पर मंत्रिमंडल की मुहर लगवा लेती है तो सात लाख बच्चे हर साल निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे। निजी स्कूलों को भी अपने सामाजिक उत्तरदायित्व का अहसास होना चाहिए। वे समझें शिक्षा का क्षेत्र दूसरे व्यवसायों से अलग है और उसी के अनुसार व्यवहार होना चाहिए। इसी में गरिमा भी है।
(29-09-2015)

