Saturday, 26 September 2015

ताकि बदले सूरत


ताकि बदले सूरत

खराब लिंगानुपात के लिए बदनाम हरियाणा में जिस तरह शर्तिया बेटा होने की दवा देने के मामले सामने आ रहे हैं वह न केवल चिंताजनक हैं, बल्कि सरकार के प्रयासों पर भी सवाल उठा रहे हैं। कुछ दिन पहले यमुनानगर जिले में एक पंसारी को पकड़ा गया जो पुत्र होने की दवा बेच रहा था। उसके पास से मिली दवाइयों के बारे में दावा किया गया था कि उनके सेवन से बेटा ही होगा। कैथल में सामने आया मामला कुछ ज्यादा चिंताजनक है। 500 रुपये लेकर दवाइयों की पुडिय़ा देने वाला व्यक्ति आठवीं फेल बताया जा रहा है। यह अच्छी बात है कि भोले-भाले और गलत धारणा के शिकार लोगों को धोखा दे रहा वह व्यक्ति गिरफ्तार कर लिया गया और कई लोग झांसे में आने से बच गए। जब भी स्त्री-पुरुष अनुपात की चर्चा होती है कि हरियाणा की गिनती पिछड़े राज्यों में होती है। देश के 15 सबसे खराब लैंगिक अनुपात वाले जिलों में नौ जिले इस राज्य के हैं। आज भी यहां एक हजार पुरुषों पर स्त्रियों की संख्या 879 है और शादी के लिए युवाओं को दूसरे राज्यों से लड़कियों को लाना पड़ रहा है।
यह विचारणीय सवाल है कि बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ राष्ट्रीय अभियान शुरू करने वाले इस राज्य में सरकार अपने मकसद में कहां तक कामयाब हो सकी है। जिस राज्य की बेटी कल्पना चावला अपने अंतरिक्ष अभियान के लिए पूरी दुनिया में अमर हो गई हो, जहां की लड़कियां अपने अदम्य साहस और जज्बे से पूरे खेल जगत को सुगंधित कर रही हों, वहां बेटे के प्रति आग्र्रह का नहीं छूटना चिंताजनक है। पुत्र के प्रति अंधी लालसा का ही कारण है कि आयेदिन अस्पतालों में बेटा बदलने के आरोप लगाकर हंगामे हो रहे हैं। पानीपत में एक मासूम तीन महीने बाद भी अस्पताल में है। नर्सें उसकी देखरेख कर रही हैं और जिसे मां बताया जा रहा है वह उसे अपनी संतान मानने को तैयार नहीं। डीएनए परीक्षण कराने में प्रशासन को पसीने छूट रहे हैं। पानीपत की सरजमीं से राष्ट्रीय अभियान शुरू करते समय प्रधानमंत्री को उम्मीद थी कि इससे माहौल बदलेगा। लोग बेटियों को पराया धन मानने की धारणा से बाहर निकलेंगे और पुत्रों से बढ़कर उनकी शिक्षा-दीक्षा पर ध्यान देंगे। मगर, यह उम्मीद फिलहाल साकार होती नहीं दिख रही है। सरकार ही नहीं हर जिम्मेदार नागरिक का कर्तव्य है कि प्रदेश के माथे पर लगे इस कलंक को दूर करने में आगे आए।
(28-09-2015)

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