सराहनीय पहल
एक अनुमान के अनुसार प्रदेश में पिछले एक साल में 52 डॉक्टर सरकारी नौकरी छोड़ कर निजी अस्पतालों में जा चुके हैं। सबसे गंभीर स्थिति मेवात जैसे इलाकों की है। मेवात भत्ता बंद किए जाने से शहीद हसन खां मेवाती मेडिकल कालेज से 26 डॉक्टरों का पलायन चिंतनीय विषय है। पिछले दो महीने में मेडिकल कालेज छोडऩे वाले इन चिकित्सकों में नौ विशेषज्ञ शामिल हैं। आशंका है कि ऐसे डॉक्टरों की संख्या बढ़ सकती है और अगर ऐसा हुआ तो मेडिकल कालेज की मान्यता पर भी संकट आ सकता है। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि हालात किस कदर गंभीर हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि मौजूदा सरकार ने चिकित्सा सेवाओं में सुधार को प्राथमिकता में रखा है। वह लगातार इस पर कार्य कर रही है कि लोगों को समय पर समुचित और सस्ता इलाज उपलब्ध कराने के लिए क्या किया जाए? अस्पतालों की लचर हो गई व्यवस्था सुधारने से लेकर वहां जरूरी साजो-सामान उपलब्ध कराने के लगातार प्रयास हो रहे हैं। पूरी कोशिश है कि सरकारी अस्पतालों में लोगों को जरूरी इलाज मुहैया कराए जा सकें। प्रदेश के पांच जिलों में दस डायलिसिस मशीनें लगाने की घोषणा भी इसी के तहत है। दवाइयों की आपूर्ति व्यवस्था दुरुस्त करने के साथ ही मानव संसाधन के उचित प्रबंधन के उपाय किए जा रहे हैं। मगर, सबसे जरूरी योग्य और विशेषज्ञ चिकित्सकों को सरकारी अस्पतालों से जोडऩा है। पूर्व की सरकारों ने भी इस दिशा में प्रयास किए थे। अस्पतालों के प्रबंधन का कार्य के लिए अलग कैडर बनाने की योजना पर विचार भी हुआ था। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार चिकित्सकों की इस समस्या से पार पा लेगी।
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