Friday, 25 September 2015

मंथन की जरूरत

मंथन की जरूरत

हरियाणा में पंचायत चुनाव को लेकर जो अजीबोगरीब स्थिति बन गई है, वह कतई अच्छी नहीं है। हां, प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के राजनीतिक शुचिता के प्रति आग्र्रह और उसकी नियत पर संदेह नहीं किया जा सकता और इस उद्देश्य से हरियाणा पंचायती राज कानून में संशोधन का फैसला भी उसका उचित ही है। आखिर कौन नहीं चाहेगा कि उसे सक्षम नेतृत्व मिले। यह सक्षमता शिक्षा-दीक्षा, ईमानदारी, कानून के प्रति सम्मान और जिम्मेदार नागरिक के भाव से ही आती है। इसलिए अगर यह अपेक्षा की जाती है कि राजनीतिक नेतृत्व पढ़ा-लिखा हो तो गलत नहीं है। निश्चित रूप से उसे आपराधिक प्रवृत्ति का नहीं होना चाहिए। उसे अपनी वित्तीय और दूसरी जिम्मेदारियों का न केवल अहसास हो, बल्कि वह उसका निर्वहन भी करता हो। मगर, यह कहना कि एक निश्चित शैक्षणिक योग्यता कुशल नेतृत्व के लिए अनिवार्य है, कतई उचित नहीं है। इसलिए नए कानून पर उठ रही आपत्तियों को दरकिनार नहीं किया जा सकता। प्रदेश की मौजूदा सरकार से यही चूक हुई है। बेशक उसने पंचायती राज कानून (संशोधन) पर विधानसभा की मुहर लगवा ली, लेकिन आपत्तियों को दूर करने का अपेक्षित प्रयास नहीं हुआ। यह लोकतंत्र का तकाजा भी है कि सभी पक्षों को सुना जाए, उनकी शंका का समाधान किया जाए और नई राह निकाली जाए। नए कानून लाने में सरकार की जल्दबाजी भी समझ से परे है। बेहतर होता वह इस पर चर्चा कराती, राजनीतिक दलों और अन्य सामाजिक संगठनों से राय लेती। नए बदलाव के लिए जनमानस को तैयार करती। ऐसा कर वह एक स्वस्थ परंपरा की शुरुआत करती। इस मामले में सरकार से रणनीतिक चूक भी हुई है। उसने संभावित अदालती चुनौती से निपटने की पूरी तैयारी नहीं की। अगर ऐसा होता तो सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंचायती राज कानून (संशोधन) पर स्थगन आदेश देने के बाद भी वह आमजन को असमंजस की स्थिति से बचा लेती। उसे अदालत के आदेश की प्रति नहीं मिलने जैसी कमजोर दलील नहीं देनी पड़ती। पहले चरण के लिए नामांकन शुरू होने के तीन दिन बाद सभी को इसकी अनुमति देकर भी लोगों के साथ न्याय नहीं किया जा सकता। व्यावहारिक पहलू यह है कि अब वही लोग चुनाव लडऩे में सफल हो सकते हैं, जिनकी पहले से तैयारी हो। नए कानून आने के बाद बड़ी संख्या में लोग निराश होकर बैठ गए थे। इसमें संदेह ही है कि वे नामांकन कर पाएं। प्रशासनिक तैयारी भी ऐसी नहीं लगती कि सभी का नामांकन लिया जा सके। सरकार को मंथन करना चाहिए कि आगे की राह कैसे आसान बनाई जा सकती है।
(१९-०९-२०१५)


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