Friday, 10 October 2014

राम नाम के राही


राम नाम के राही



श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि यज्ञों में सबसे उत्तम जप यज्ञ है। राम नाम के जप को जीवन का सूत्र मानकर अध्यात्म मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए श्रीरामशरणम् पानीपत से उपयुक्त कोई और जगह नहीं हो सकती। अध्यात्म की नवीन परंपरा का अनुशरण कर सात्विकता, शुचिता और कर्मठता के साथ हजारों लोगों के जीवन को तार रहे इस पुण्यस्थल की स्थापना महान संत स्वामी सत्यानंद जी महाराज के कर कमलों से हुई थी। सन 1960 में करवा चौथ की अगली सुबह ''श्रीरामशरणम्'' का उद्घाटन करते हुए स्वामी जी ने कहा था कि इस स्थल का निर्माण स्वयं प्रभु राम की प्रेरणा से विशिष्टï लक्ष्य की पूर्ति के लिए हुआ है।
54 साल की अल्प अवधि में ही श्रीरामशरणम् के चतुर्दिक प्रसार और साधकों की बड़ी तादाद देखकर इस पर प्रभु की कृपा का आभास होता है। उद्घाटन के एक माह बाद ही स्वामी जी ने अपना पंचभौतिक देह त्याग दिया, लेकिन उपदेशों की ऐसी थाती छोड़ गए जो सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।
श्रीरामशरणम् के रूप में स्वामी जी की जलाई लौ को मां शकुंतला देवी ने अपने रक्त से सींचा। हाथों की ओट देकर न केवल आंधी-तूफान से उसे बचाया, अपितु इसे पल्लवित-पुष्पित किया। उन्होंने श्रीरामशरणम् पानीपत की कई शाखाओं की स्थापना की ताकि अधिक से अधिक बहन-भाइयों में उस प्रकाश को बांट सकें। चार दशक की लंबी साधना में उनके कर्मशील हाथों ने उस लौ को प्रकाशपुंज बना दिया। उन्होंने साधकों को उच्च संस्कार दिए। प्रचार-प्रसार से दूर, आडंबर रहित और हर तरह की बुराइयों से मुक्त रहकर उन्होंने अध्यात्म मार्ग पर चलना सिखाया। उन्होंने बताया कि एक साधक को कैसा होना चाहिए? जरूरी नहीं कि वह परिवार से दूर रहे। सामाजिक व पारिवारिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए भी परलोक सुधारा जा सकता है। राम नाम की ऊर्जा मन को निर्मल बनाने के साथ ही परमेश्वर के निकट ले जाती है। यह एक अच्छी मानसिक चिकित्सा भी है, जिससे सारे मनोविकार दूर हो जाते हैं। मानसिक शुद्धता हमें पवित्र राह पर आगे बढ़ाती है।
सन् 1996 में मां शकुंतला देवी से प्राप्त इस धरोहर की रखवाली का महती दायित्व मां दर्शी जी ने बखूबी संभाला। वह शकुंतला मां के दिए संस्कार को आत्मसात कर स्वामी जी के दिखाए धर्म मार्ग पर साधकों को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा रही हैं। अनन्यता, पवित्रता, निष्कामता, समर्पण और सेवाभाव जैसे सात्विक गुण यहां के साधकों की पूंजी हैं। मां दर्शी जी नैतिकता को जीवन का अंग बनाने पर बहुत बल देती हैं। यहां जैसा अनुशासन तो शायद ही अन्यत्र दिखे। विशिष्ट अïवसरों पर हजारों की संख्या में आए साधक बिना किसी बाधा के सत्संग लाभ उठाते हैं।
इस पावन धरती पर प्रभु श्रीराम का निरंतर आह्वïान होता रहता है। दैनिक संध्या में ध्यान और भजन-कीर्तन हमें नई ऊर्जा से सराबोर करते हैं तो वर्ष भर चलने वाले सत्संग आदि कार्यक्रम हमें उच्च आध्यात्मिक संस्कार देते हैं। रामनवमी से पहले साठ दिन के बाल्मीकीय रामायणसार के पाठ में आदर्श पुरुष श्री रामचंद्र जी का चित्र देखने को मिलता है। जन्माष्टïमी पर 18 दिन के गीता-पाठ से निष्काम-कर्म, अनन्य-भक्ति तथा स्थितप्रज्ञता का संदेश मिलता है। साधना-शिविरों में जन्म-जन्मातंरों से बिछुड़ी आत्माएं प्रभु के साथ एकाकार हो जाती हैं।
श्रीरामशरणम आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्ग को स्कूल से लेकर प्रोफेशनल शिक्षा तक के लिए बहुत बड़ी संख्या में छात्रवृत्तियां तथा अनुदान देता है। इसके परिसर में एक होम्योपैथिक तथा एक ऐलोपैथिक चिकित्सालय का संचालन होता है ताकि उचित परामर्श तथा औषधि से रोगों से मुक्ति पाई जा सके।
दर्शी मां के कुशल मार्गदर्शन में गंगा जैसी निर्मलता और पवित्रता को संजोए श्रीरामशरणम् की शुचिता, शीतलता, मर्यादा-प्रियता निरंतर बढ़ रही है। यहां निराश्रयों को आश्रय मिलता है, भटके हुओं को दिशा मिलती है। यहां आकर तन-मन निरोग हो जाता है। आत्मा आलोकित हो उठती है। जीवन संवरते हैं। उद्घाटन दिवस पर इस पावन भूमि को बारंबार नमन।









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