Monday, 13 October 2014

क्या गुल खिलाएगा डेरा सच्चा सौदा के समर्थन का दांव


क्या गुल खिलाएगा डेरा सच्चा सौदा के समर्थन  का दांव

आखिर भाजपा ने विधानसभा चुनाव में अपना आखिरी दांव चल दिया। प्रचार कार्य खत्म होने के कुछ देर पहले डेरा सच्चा सौदा ने भाजपा को खुला समर्थन देकर राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी। डेरे का साथ क्या गुल खिलाएगा यह तो चुनाव नतीजे बताएंगे, लेकिन इतना तय है कि इसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। अगर है भी तो बहुत कम। डेरे से पार्टी की नजदीकी से सिख वोटों पर थोड़ा बहुत असर पड़ सकता है, लेकिन उससे ज्यादा लाभ है। अनुमान है कि राज्य की 90 विधानसभा सीटों में 60 पर डेरा सच्चा सौदा का प्रभाव है। इसके अनुयायी बहुत कट्टर हैं और संत का आदेश उनके लिए सर्वोपरि है। समर्थन का तरीका भी अहम है। डेरा मुखी ने खुद घोषणा करने के बजाय ब्लाक स्तर पर नामचर्चा में इसकी घोषणा कराई। एक दिन पहले तीन घंटे की लंबी चर्चा के बाद तय हुआ कि सीधी घोषणा के बजाय ब्लाक स्तर पर नामचर्चा में भाजपा प्रत्याशियों को बुलाया जाए और वहीं समर्थन की घोषणा हो। ताकि डेरा प्रेमी प्रत्याशियों से और जुड़ाव महसूस करें।

जैसा कि बताया जा रहा है भाजपा इसके लिए काफी दिनों से प्रयास कर रही थी। शुरू में खबर आई कि भाजपा अध्यक्ष अमित शाह डेरा मुखी से मुलाकात कर सकते हैं, लेकिन शाह खुलकर नहीं मिले और सारा खेल पर्दे के पीछे चला। राज्य में भाजपा के चुनाव प्रभारी कैलाश विजयर्गीय डेरे में जाकर डेरा मुखी से मुलाकात कर चुके थे। कुछ दिन पहले सुषमा स्वराज ने भी जाकर गुरमीत राम रहीम से आशीर्वाद लिया था। यहां तक कि चुनाव प्रचार के दौरान सिरसा में डेरे के प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी। इसके बाद साफ हो गया था कि डेरा भाजपा के साथ आ रहा है। दरअसल, प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान के कारण डेरे ने सैद्धांतिक जुड़ाव महसूस किया। हरियाणा के नेताओं ने तो यह कहा भी कि मोदी का स्वच्छता अभियान डेरा सच्चा सौदा की नकल है। इस दोस्ती की जरूरत दोनों को थी। कानूनी मामलों में उलझे डेरा प्रमुख को भी राजनीतिक साथ चाहिए था। अगर वह साथ केंद्र में सत्तारूढ़ दल का हो तो भला कौन छोड़ना चाहेगा?

डेरा सच्चा सौदा की राजनीतिक अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पंजाब विधानसभा चुनाव में सभी दल समर्थन के लिए लालायित रहते हैं। हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में भी डेरे का खास प्रभाव है। हरियाणा के नेता भी समर्थन के लिए डेरे में जाकर आशीर्वाद लेते रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल और उनके पुत्र सुखबीर बादल जिस तरह इनेलो के समर्थन में मैदान संभाले हुए थे, उसमें डेरे के समर्थन से अच्छा कोई राजनीतिक जवाब नहीं हो सकता। अकाली दल की डेरे से दूरी सर्वविदित है। इनेलो के नजदीक जाकर उसने भाजपा को डेरा सच्चा सौदा के साथ दोस्ती से रोकने का नैतिक बल खो दिया है। कांग्रेस के वोटों पर डेरा प्रेमी असर डालेंगे।

























   

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