कैलाश जैसे ऊंचे स
त्यार्थी
11 जनवरी, 1954 को विदिशा (मध्य प्रदेश) में जन्मे कैलाश सत्यार्थी को वर्ष 2014 के लिए शांति का सर्वोच्च नोबल पुरस्कार देश के करोड़ों लोगों के लिए वाकई सुखद और गौरवान्वित करने वाला है। हालांकि यह पुरस्कार उन्हें पाकिस्तानी बाला मलाला यूसुफजई ( 12 जुलाई 1997) के साथ संयुक्त रूप से मिला है, लेकिन कैलाश की उपलब्धि या समाज के लिए उनका योगदान इससे अप्रभावित है। बचपन बचाओ आंदोलन के जनक कैलाश ने साबित कर दिया कि वे कैलाश पर्वत से जैसे ऊंचे इरादों वाले हैं। आखिर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर की नौकरी छोड़ कैलाश ने बाल अधिकारों के लिए संघर्ष की राह पकड़ी और अब तक 80 हजार बाल मजदूरों को मुक्त करा चुके हैं। चार भाइयों में सबसे छोटे कैलाश के इस कार्य में उनकी पत्नी सुमंधा कैलाश, अधिवक्ता पुत्र भुवन रिभु और पुत्रवधु प्रियंका संघर्ष के साथी हैं। पुत्री अस्मिता एक अमेरिकी विश्वविद्यालय में अध्ययन पूरा करने के बाद वाशिंगटन स्थित विश्व की जानी-मानी संस्था इंटरनेशनल सेंटर फॉर मिशन एंड एसप्लाइटेड चिल्ड्रेन में एक वर्ष तक फेलो रहीं हैं। कैलाश ने प्रारंभिक शिक्षा विदिशा के पेढ़ी स्कूल और तोपपुरा स्कूल में ग्रहण की। इसके बाद उन्होंने एसएसएल जैन स्कूल में शिक्षा लेने के बाद एसएटीआइ से बीई इलेक्ट्रिकल ब्रांच से इंजीनियरिंग की। इसी कॉलेज में दो साल तक पढ़ाया भी, लेकिन कॉलेज प्रबंधन से विवाद के बाद नौकरी छोड़कर दिल्ली चले गए। बाद में वह केस जीते कॉलेज प्रबंधन ने उन्हें वापस भी बुलाया पर सत्यार्थी जब तब अपनी अलग राह बना चुके थे।
दरअसल, कॉलेज प्रबंधन से विवाद कैलाश के जीवन के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। कालेज प्रबंधन के खिलाफ संघर्ष ने उनके अंदर अन्याय के खिलाफ लड़ने का जज्बा पैदा कर दिया। दिल्ली प्रवास के दौरान बच्चों के साथ हो रहे अन्याय व शोषण ने उन्हें झकझोर दिया। दिल्ली से सटे हरियाणा के फरीदाबाद, गुड़गांव और भिवानी में पहाड़ों पर खनन में बड़ी संख्या में बंधुआ मजदूरों का इस्तेमाल होता था। युवा ही नहीं मासूम बच्चों और महिलाओं को अमानवीय परिस्थितयों में काम करना पड़ता और दिहाड़ी भी नहीं मिलती। औद्योगिक माहौल भी श्रम विरोधी था। कैलाशने संघर्ष किए, खदानों से बड़ी संख्या में बंधुआ मजदूर मुक्त कराए। फैक्टरियों में श्रमिकों के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ मजबूती से खड़े हुए। शुरुआती दौर में ही उनके संघर्ष की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने कई महत्वपूर्ण फैसले दिए। खासकर बाल श्रम पर।
अब अन्याय व शोषण के खिलाफ कैलाश एक मजबूत आवाज बन चुके थे। जहां भी गलत हो रहा होता, लोग उन्हें सूचना देते और कैलाश वहां पहुंच जाते। दिल्ली के बाद यूपी और उसके बाद बिहार पहुंचे तो वहां रुक ही गए। बिहार और अब झारखंड में उन्होंने काफी काम किया। यह एक तरह से उनका कर्मक्षेत्र बन गया।
उन्होंने बाल मजदूरी के खिलाफ वैश्विक मंच बनाया, जो अनेक देशों में सक्रिय है। उन्हें 1994 में रगमार्क की स्थापना का भी श्रेय है जो अब गुड वेव के रूप में जाना जाता है। यह दक्षिण एशिया में एक तरह का बाल श्रम मुक्त उत्पाद का सामाजिक प्रमाण-पत्र है। उन्हें पहले भी कई बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया गया था, लेकिन पुरस्कार अब मिला।
यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि कैलाश के योगदान को भारत सरकार ने नहीं पहचाना। आम जनमानस भी अगर उनके कृतित्व से अनजान रहा तो निश्चित रूप से चिंता की बात है।

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