Monday, 6 October 2014

चुनावी रेस में तिहाड़ वाले चौटाला




चुनावी रेस में तिहाड़ वाले चौटाला


हरियाणा में चुनावी माहौल इन दिनों पूरे शबाब पर है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब तक करनाल, हिसार, कुरुक्षेत्र व फरीदाबाद में जनसभाएं कर चुनावी लहर को काफी हद तक अपने पक्ष में मोड़ते दिख रहे हैं, वहीं कांग्र्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक ही दिन महम और सिरसा में जनसभाएं कर निराश पार्टी जनों में जान डालने की कोशिश की है। राज्य में तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण खिलाड़ी राजनीतिक इंडियन नेशनल लोक दल ने आश्चर्यजनक रूप से चुनावी दौड़ में न केवल वापसी की है, बल्कि दूसरों को कड़ी टक्कर दे आगे बढ़ता दिख रहा है। खासतौर पर 25 सितंबर को पूर्व उपप्रधानमंत्री चौ. देवीलाल के जन्मदिवस पर जींद में रैली इसके लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुई है। रैली पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा, जनता दल युनाइटेड के अध्यक्ष शरद यादव, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की मौजूदगी ने राज्य ही नहीं वरन राष्ट्रीय स्तर पर एक राजनीतिक समीकरण का संकेत दिया था। रैली में समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव को भी आना था, लेकिन ठंडा कर खाने वाले नेताजी किसी जल्दबाजी में नहीं हैं। लिहाजा उन्होंने अपने अनुज शिवपाल यादव को भेज उपस्थिति दर्ज करा दी। बताते हैं कि रैली को राजनीतिक स्वरूप देने का तानाबाना नीतीश कुमार ने बुना था और सफल भी रहे। हालांकि मुलायम आ जाते तो उनका काम आसान हो जाता।
मगर, इनेलो के लिए इन नेताओं की मौजूदगी से भी ज्यादा अहम रही उसके सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला का चुनावी शंखनाद बजाना। पूरी आयोजन चौटाला के नाम हो गया, जो नीतीश को झटका था, लेकिन इनेलो के लिए रामबाण दवा। अपने भाषण में चौटाला ने अहसास करा दिया था कि वे पूरी तैयारी से आए हैं। तिहाड़ से शपथ लेेने की उनकी बात आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा जैसे दिग्गजों के लिए जुमला बना हुआ है। चौटाला का होमवर्क कितना मजबूत है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वास्थ्य आधार पर जमानत के दौरान उनके चुनाव प्रचार पर चुनाव आयोग कुछ करने की स्थिति में नहीं है और सीबीआइ अदालत में जल्द सुनवाई की दरखास्त लगा रही है। केंद्र और राज्य की सरकारों के हाथ तो वैसे ही बंधे हैं। कोई गलती कर वे इनेलो को और बढ़त नहीं दिला सकते।
सबसे पहले प्रत्याशी घोषित कर इनेलो ने जो बढ़त बनाई थी, कैडर आधारित पार्टी में बगावत ने पानी फेर दिया था। तीन-तीन बार विधायक रहे नेताओं ने पार्टी छोडऩे में कोई समय नहीं लगाया। दूसरी, तीसरी और चौथी सूची में भी यही स्थिति रही। आखिर जींद की उचाना सीट से हिसार के मौजूदा विधायक दुष्यंत चौटाला को उतारना पड़ा। पहली बार इस परिवार की बहू चुनावी मैदान में उतरी। शुरू में कार्यकर्ता पार्टी की सफलता को लेकर संशय में थे। उनका उत्साह बनाए रखना पार्टी नेतृत्व को मुश्किल हो रहा था, लेकिन ओम प्रकाश चौटाला के मैदान में आते ही सारी कमी दूर हो गई। आज स्थिति यह है कि चौटाला पार्टी के स्टार प्रचारक बने हुए हैं। पूरा चुनाव उनके इर्द-गिर्द घूमने लगा है। हालांकि अभी चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगी, लेकिन यह तय है कि चौटाला ने पार्टी को रेस में कांग्र्रेस से आगे कर दिया है।

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