आधी अधूरी तैयारी
नरेंद्र दामोदर दास मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार ने राष्टपिता महात्मा गांधी की जयंती पर 'स्वच्छ भारत अभियान' का श्रीगणेश कर दिया है। मोदी सरकार का यह महा अभियान कई मायनों में ऐतिहासिक और दूरगामी प्रभाव वाला है। इसमें कोई संकोच नहीं कि स्वच्छता एक बहुत बड़ा मुद्दा है और सरकार ने इसके लिए वृहद अभियान छेड़कर सराहनीय कार्य किया है। अमेरिकी यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री ने जिस तरह स्वच्छता के सपने को दुनिया के सामने रखा, उससे लगता है कि वे इस पर काफी दिनों से काम कर रहे थे। अपने इस सपने को साकार करने के लिए उन्होंने कई रातें नहीं सोईं। शुरुआत ही इतनी धमाकेदार हुई कि प्रचार-प्रसार की जरूरत नहीं रह गई। सबसे अच्छा अवसर का चयन है। स्वच्छता के लिए महात्मा गांधी की जयंती से उपयुक्त कोई अवसर नहीं हो सकता था। राष्ट्रपिता से जोड़कर उन्होंने अभियान को व्यक्ति, पार्टी, विचारधारा से ऊपर ले जाकर आम जनमानस का विषय और उसकी चिंता बना दिया है। इससे बता चलता है कि मोदी अभियान को लेकर वैचारिक रूप से कितने तैयार हैं। अभियान के संचालन के लिए चुने गए नवरत्नों में उन्होंने सिनेमा, समाजसेवा और अध्यात्म क्षेत्र में नए प्रतिमान गढ़ने वाले लोगों को शामिल किया। स्वामी रामदेव, आमिर खान, प्रियंका चोपड़ा और सलमान खान ऐसे लोग हैं जिनका अपने प्रशंसकों पर काफी प्रभाव है। यह जरूरी था कि अभियान से हर वर्ग को जोड़ा जाए। किसी को निरापद या अगंभीर मानना उसके साथ ही नहीं, देश के साथ भी अन्याय होगा। मोदी ने यही किया।
ऐसा कम ही होता है कि सबकुछ तय योजना के मुताबिक हो। मोदी का यह सपना भी इतनी आसानी से साकार होने वाला नहीं है। बड़ी समस्या इस अभियान के लिए धन की आएगी। जिस तरह से निजी क्षेत्र को इससे जोड़ा जा रहा है, उससे लगता है कि सरकार धन का इंतजाम कर लेगी। कुछ रणनीतिक खामियां भी दिख रही हैं। अभियान शुरू करने से पहले कूड़ा निस्तारण पर कार्य करना चाहिए था, जिसके अर्से से जरूरत महसूस की जा रही है। अगर कूड़ा रखने, गंदगी को नष्ट करने की व्यवस्था नहीं हो तो एक जगह से हटाई गंदगी दूसरी जगह ही जाएगी। खत्म नहीं हो सकती। अगर कूड़ादान पड़ा हो तो कम ही लोग होंगे जो उसके बाहर कागज के टुकड़े फेंकेंगे। यही स्थिति दूसरे मामलों में भी है। अगर कालोनियों में दैनिक कूड़ा-कचरा उठाने की व्यवस्था हो तो कोई पड़ोस में क्यों डालेगा? इसलिए सरकार को कूड़ा निस्तारण और प्रबंधन पर कार्य करना चाहिए था। इस लिहाज से उसकी तैयारी आधी-अधूरी ही लगती है।
धन और दूसरी चीजों से भी ज्यादा जरूरी है इच्छाशक्ति का होना। बगैर इसके इतना बड़ा अभियान चल ही नहीं सकता। वैसे भी सफाई एक भाव है, जो हमारे अंदर से पैदा होता है। यह हमे माता-पिता, परिवार और समाज से संस्कार में मिलता है। लिहाजा सफाई के लिए हमें संस्कार में बदलाव तक जाना होगा। प्रारंभिक इकाई की पहचान कर वहीं से कार्य शुरू करना होगा और आखिर तक पहुंचें तभी लक्ष्य की प्राप्ति होगी। हमें बच्चों से लेकर बड़े-बुजुर्गों तक में सफाई का भाव पैदा करना होगा। उन्हें बताना होगा कि यह कानूनी व सामाजिक नहीं वरन नैतिक दायित्व है।
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