हरियाणा में चुनावी चक्रव्यूह
हरियाणा में विधानसभा चुनाव पूरी तरह उलझ गया है। कुछ हफ्ते पूर्व तक लग रहा था कि मतदान नजदीक आते-आते परिदृश्य साफ हो जाएगा, लेकिन यह और उलझता गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दस चुनावी रैलियों के बावजूद भाजपा जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की तीन और पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की तीन सभाएं भी कांग्रेस के पक्ष में माहौल नहीं बना सकी हैं। दलबदल मामले में हाईकोर्ट का फैसला पक्ष आने के बावजूद हरियाणा जनहित कांग्रेस कहीं लड़ाई में नहीं दिख रही। निर्दलियों के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन उन पर भरोसा कौन करे?
दो टीवी चैनलों के सर्वे ने दिखाया कि किसी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल रहा है। भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी, लेकिन इनेलो उससे बहुत दूर नहीं रहेगा। थोड़ा भी ऊंच-नीच हुआ तो स्थिति उलट सकती है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि लूली-लंगड़ी सरकार बनाई तो ये लूट ले जाएंगे। नरेंद्र मोदी के शुरुआती तेवर, कांग्रेस व इनेलो पर तीखा हमला आखिरी दिन नहीं दिखा। और वे याचना और अपील की मुद्रा में आ गए। भाजपा ने हरियाणा चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ी। मोदी ने स्वयं चुनाव प्रचार की कमान संभाली। टिकट वितरण में तय मानदंडों का कड़ाई से पालन किया और सबसे अहम मुख्यमंत्री पद के कथित दावेदारों को उनकी औकात बता दी। यह जरूरी भी था, नहीं चुनाव प्रचार में अराजकता की स्थिति पैदा हो जाती। इसका नुकसान यह जरूर है कि राव इंद्रजीत, चौ. बीरेंद्र सिंह, प्रदेश अध्यक्ष रामबिलास शर्मा, अनिल विज जैसे नेता अपने क्षेत्रों में सिमट कर रह गए हैं। पार्टी ने कैप्टन अभिमन्यु को जरूर दूसरे क्षेत्रों में प्रचार की जिम्मेदारी दी है, तो इसलिए कि जाट नेताओं को जोड़ा जा सके। मगर, सबसे बड़ा फायदा यह है कि चुनाव प्रचार बहुत ही व्यवस्थित ढंग से संचालित हो रहा है। केंद्रीय और दूसरे राज्यों से नेताओं की एक बड़ी फौज पार्टी ने हरियाणा में उतार दी है। लोकसभा चुनाव में प्रचार से दूर रहे क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू भी दो-तीन दिन तक यहां प्रचार करते दिखे। रोड शो किया और आम लोगों से मिले। गृह मंत्री राजनाथ सिह डेढ़ दर्जन से ज्यादा सभाएं कर चुके हैं तो विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक तरह से यहां डेरा डाल दिया है। खास तौर पर जींद की सफीदों सीट पर अपनी बहन डा. वंदना शर्मा को जिताने में उन्होंने पूरी ताकत लगा दी है। इन सबके बावजूद जींद जिले की सीटें बीजेपी के लिए मुसीबत बनी हुई हैं। उचाना से ओमप्रकाश चौटाला के पौत्र दुष्यंत बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेमलता से काफी आगे हैं। अगर प्रेमलता जीतती हैं तो चमत्कार ही होगा। यही हाल सफीदों का है, जहां पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी है, लेकिन वंदना की उम्मीदें पूरी होती नहीं दिख रहीं। सारे प्रयास के बावजूद भाजपा लोकसभा चुनाव की तरह लहर नहीं पैदा कर सकी है।
कांग्रेस की स्थिति बहुत खराब है। मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हु्डडा स्टार प्रचारक हैं। बेटे दीपेंद्र हुड्डा उनके बाद सबसे ज्यादा रैली व सभाएं करने वालों में हैं। प्रदेश अध्यक्ष अशोक तंवर पूरे मन से मैदान में नहीं दिख रहे। कुमारी सैलजा ऐसे प्रचार कर रही हैं, जिसे किसी दूसरे राज्य की नेता हों। आखिर में सचिन पायलट को लाकर पार्टी ने जरूर अच्छा किया है, लेकिन बहुत देर हो चुकी है।
कुछ माह पहले तक बड़े-बड़े दावे करने वाली हरियाणा जनहित कांग्रेस की स्थिति वर्ष 2009 के चुनाव से भी बुरी लग रही है। अगर बहुत अच्छा हुआ तो तीन सीटें जीत सकती है दो पर टक्कर दे सकती है। जीत की संभावना वाली तीन सीटों में कुलदीप बिश्नोई (आदमपुर), उनकी पत्नी रेणुका (हांसी) और भाई चंद्रमोहन (नलवा) हैं। फतेहाबाद से दूड़ाराम की स्थिति भी अच्छी बताई जा रही है। विनोद शर्मा की हरियाणा जनचेतना पार्टी और गोपाल कांडा की हरियाणा लोकहित पार्टी का खाता खुल जाए तो बड़ी बात होगी। निर्दलीय जरूरी कई जगह अच्छी स्थिति में हैं। कलायत में पूर्व मंत्री जयप्रकाश चौ. बीरेंद्र समर्थक भाजपा प्रत्याशी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं तो सफीदों में भी निर्दलीय मजबूत है।
अब बात इंडियन नेशनल लोकदल की। प्रत्याशियों की घोषणा और चुनाव घोषणापत्र सबसे पहले जारी कर पार्टी ने जो बढ़त बनाई थी, प्रत्याशियों के विरोध ने सब पर पानी फेर दिया था। कॉडर आधारित पार्टी में उठे बवंडर का अनुमान तो विरोधियों को भी नहीं था, लेकिन मौजूदा नेतृत्व ने जिस तरह मजबूती से अपने फैसले पर अड़ा रहा, वह बाद में लाभकारी साबित हुआ। नीचे तक संकेत गया कि दबाव नहीं चलेगा। मगर, इनेलो प्रमुख ओमप्रकाश चौटाला ने जो रणनीति अपनाई उस पर आगे चर्चा होगी। जेबीटी भर्ती मामले में कानूनी की पतली गलियों से निकलकर वे अस्पताल में रहे। इस दौरान राजनीति का जो तानाबाना बुना, वह चुनाव में काम आ गया। राष्ट्रीय राजनीति में नरेंद्र मोदी के अभ्युदय के बाद आपस में लड़ रहे लोहियावादियों, जेपीवादियों के लिए जरूरी हो गया था कि वे एक साथ आएं। चौटाला ने इस कवायद को मजबूती दी। 25 सितंबर की जींद रैली में नीतीश कुमार, देवगौड़ा, शरद यादव और प्रकाश सिंह बादल का एक साथ मंच पर आना राष्टीय राजनीति की अहम घटना साबित हुई। इसका सबसे अधिक फायदा इनेलो को मिला और वह मैदान में आ गई। कुछ ही दिनों के भीतर ही चौटाला ने विधानसभा चुनाव का पूरा परिदृश्य बदल दिया। देवीलाल परिवार को अपना परिवार बताने वाले नरेंद्र मोदी चौटाला पर सीधे हमले के लिए मजबूर हो गए। उन्होंने परिवारवाद जैसे सैद्धांतिक प्रहारों से नीचे उतरकर गुंडों व लुटेरे तक बता दिया। बेटों पर भरोसा नहीं होने जैसे आरोप लगाए। लेकिन यहीं मोदी मात खा गए। उनके तीखे हमलों ने चौटाला के प्रति सहानुभूति बढ़ा दी। जिसका डर था वही हुआ। यही कारण था कि चौटाला ने कहा, मोदी जहां-जहां जाएंगे भाजपा हारेगी और इनेलो जीतेगा। जब तक उन्हें कानूनी शिकंजे में कसा जाता, वे अपना कर गए।
बहरहाल, चुनाव नतीजों के बारे में कोई भविष्यवाणी करना मुश्किल है, लेकिन इतना तय है कि नतीजों को लेकर कोई आश्वस्त नहीं है। न जीतने वाले और न ही किंगमेकर बनने की चाह रखने वाले।
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